बहुमुखी प्रतिभा के धनी तथा संस्कृत के बहुश्रुत विद्वान् महाकवि अश्वघोष में शास्त्र और काव्य-सर्जन की समान प्रतिभा थी। उनके व्यक्तित्व में कवित्व तथा आचार्यत्व का मणिकांचन संयोग था। उन्होंने सज्रसूची, महायानश्रद्धोत्पादशास्त्र तथा सूत्रालंकार अथवा कल्पनामण्डितिका नामक धर्म और दर्शन विषयों के अतिरिक्त शारिपुत्रप्रकरण नामक एक रूपक तथा बुद्धचरित तथा सौन्दरनन्द नामक दो महाकाव्यों की भी रचना की। इन रचनाओं में बुद्धचरित महाकवि अश्वघोष का कीर्तिस्तम्भ है। इसमें कवि ने तथागत के सात्त्विक जीवन का सरल और सरस वर्णन किया है। 'सौन्दरनन्द' अश्वघोषप्रणीत द्वितीय महाकाव्य है। इसमें भगवान बुद्ध के अनुज नन्द का चरित वर्णित है। इन रचनाओं के माध्यम से बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का विवेचन कर उन्हें जनसाधारण के लिए सुलभ कराना ही महाकवि अश्वघोष का मुख्य उद्देश्य था। इनकी समस्त रचनाओं में बौद्ध धर्म के सिद्धान्त सुस्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित हैं। अश्वघोष प्रणीत महाकाव्यों में बुद्धचरित अपूर्ण तथा सौन्दरनन्द पूर्ण रूप में मूल संस्कृत में उपलब्ध है।
बुद्धचरितबुद्धचरितम्, संस्कृत का महाकाव्य है। इसमें गौतम बुद्ध का जीवनचरित वर्णित है। इसकी रचनाकाल दूसरी शताब्दी है। सन् ४२० में धर्मरक्षा ने इसका चीनी भाषा में अनुवाद किया तथा ७वीं एवं ८वीं शती में इसका अत्यन्त शुद्ध तिब्बती अनुवाद किया गया। दुर्भाग्यवश यह महाकाव्य मूल रूप में अपूर्ण ही उपलब्ध है। 28 सर्गों में विरचित इस महाकाव्य के द्वितीय से लेकर त्रयोदश सर्ग तक तथा प्रथम एवं चतुर्दश सर्ग के कुछ अंश ही मिलते हैं। इस महाकाव्य के शेष सर्ग संस्कृत में उपलब्ध नहीं है। इस महाकाव्य के पूरे 28 सर्गों का चीनी तथा तिब्बती अनुवाद अवश्य उपलब्ध है। बुद्धचरित के 28 सर्गो में भगवत्प्रसूति, संवेगोत्पत्ति, अभिनिष्क्रमण, तपोवन प्रवेश, अंत:पुर विलाप, कुमारान्वेषणम्, श्रेणभिगमनम्, बुद्धत्वप्राप्ति, महाशिष्याणा प्रव्रज्या प्रमुख हैं।इस महाकाव्य का आरम्भ बुद्ध के गर्भाधान से तथा इसकी परिणति बुद्धत्व-प्राप्ति में होती है। यह महाकव्य भगवान बुद्ध के संघर्षमय सफल जीवन का ज्वलन्त, उज्ज्वल तथा मूर्त चित्रपट है।■



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