“निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।”
कबीर दास जी ने बड़ी सुंदर बात कही है। यूनानी फकीर गुरजिएफ ने भी अपनी आत्म-कथा में इसी तरह की बात लिखी है। उन्होंने लिखा कि मेरे पिता मृत्यु-शय्या पर थे। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया, तब चौदह वर्ष की मेरी उम्र थी, मुझसे कान में कहा-अगर मैं कोई सलाह दूं, तो तुम बुरा नहीं मानोगे? बहुत समझदार रहे होंगे वह, क्योंकि सलाह देने वाले यह कभी पूछते नहीं कि बुरा मानोगे कि नहीं मानोगे? सलाह देने वाले मुफ्त सलाह बांटते हैं। और दुनिया में जो चीज सबसे ज्यादा दी जाती है और सबसे कम ली जाती है, वह सलाह ही है।
उस बूढ़े आदमी ने जिसकी नब्बे वर्ष उम्र थी, चौदह वर्ष के बच्चे से पूछा कि क्या मैं तुम्हें सलाह दूं, तो तुम बुरा नहीं मानोगे? और अगर मैं तुम्हें सलाह दूं तो कभी तुम जीवन में मेरे प्रति रुष्ट तो नहीं रहोगे? उस युवक ने कहा कि आप कैसी बात करते हैं? आप कहें, आपको मुझे क्या कहना है? उस बूढ़े आदमी ने कहा- मेरे पास न तो संपत्ति है तुम्हें देने को, न मेरे पास और किसी तरह की यश और प्रतिष्ठा है, लेकिन जीवन भर अनुभव से मैंने एक बात पहचानी और जानी, वह मैं तुम्हें देना चाहता हूं और वह यह है कि तुम खुद को खुद से जरा दूर रख कर देखना सीखना। अगर रास्ते पर तुम्हें कोई मिल जाए और तुम्हें गाली दे, तो जल्दी से उसकी गाली का उत्तर मत देना, घर लौट आना, दूर खड़े होकर देखना कि उसने जो गाली दी वह कहीं ठीक ही तो नहीं है? अगर वह ठीक हो, तो उसको जाकर धन्यवाद दे आना कि तुमने मुझ पर बड़ी कृपा की और एक बात मुझे बताई जिसका मुझे पता नहीं था। अगर वह ठीक न हो, तो उसकी चिंता छोड़ देना। क्योंकि जो बात ठीक नहीं है, उससे तुम्हें प्रयोजन ही क्या?
उसी रात पिता नहीँ रहे। गुरजिएफ ने लिखा, “पिता की इस सीख के कारण मेरे जीवन में लड़ने का कोई मौका नहीं आया। गालियां तो मुझे लोगों ने बहुत बार दीं, लेकिन पहले मैंने उनसे कहा कि मित्र रुको, मैं जरा घर जाऊं, सोच-समझ कर आऊं, और फिर मैं आकर तुम्हें बताऊं। जब मैं घर गया और मैंने सोचा-समझा, तो मैंने पाया, कोई गाली इतनी बुरी नहीं हो सकती जितना बुरा मैं हूं। मैंने जाकर धन्यवाद दिया और कहा कि मित्र बहुत-बहुत धन्यवाद, और सदा स्मरण रखना, और जब भी जरूरत पड़े और तुम्हारे मन में कोई गाली आ जाए, तो छिपाना मत, मुझे दे देना।”
जैसे-जैसे व्यक्ति का आत्म-निरीक्षण गहरा होगा, वह विवेक को जगता हुआ पाएगा, लेकिन सच यह है कि आत्म-निरीक्षण है बिलकुल सोया हुआ हमारा। हम कभी देखते नहीं चाहते कि हम क्या कर रहे हैं, क्या हो रहे हैं, क्या चल रहा है। अगर कोई हमको बताए भी, तो हम लड़ने को खड़े हो जाते हैं। स्मरण रखना, अगर किसी गाली पर आप लड़ने को खड़े हो गए, तो पक्का समझ लेना कि आप उस गाली के योग्य थे, नहीं तो आप लड़ने को तैयार नहीं होते। जब भी आप यह सिद्ध करने की कोशिश में लगे हैं कि फलां दोष मुझमें नहीं है, तो बहुत शांति से समझ लेना, वह दोष जरूर आपमें होगा। नहीं तो आप उसे गलत सिद्ध करने की फिकर न करते।
ऊं तत्सत...



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