हकीम लुकमान की ख्याति दूर-दूर तक थी। वे अपनी दवाओं के साथ-साथ अच्छी नसीहतों के लिए भी लोकप्रिय थे। वे जितने कुशल हकीम थे, उतने ही नेकदिल इंसान भी। यहीं कारण था कि लोग उनके पास मात्र अपनी शारीरिक बीमारियों का इलाज कराने ही नहीं आते, बल्कि मन की उलझनों व बौद्धिक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करने भी आते थे।
एक दिन एक व्याक्ति लुकमान के पास आया और प्रश्न किया- हकीम साहब, मैं जानना चाहता हूँ कि आपने इतनी शिष्टता और सभ्यता कहाँ से सीखी..??
हकीम लुकमान ने उत्तर दिया- "अशिष्ट और असभ्य लोगों से।" उस व्याक्ति ने सकपकाकर पूछा यह कैसे सम्भव है?भला अशिष्ट व असभ्य लोग किसी को क्या सिखा सकते हैं?
तब लुकमान साहब बोले- "आप गलत कह रहे हो। जरा सोचकर देखो।
मुझे अशिष्ट लोगों की जो बात बुरी लगी, उन्हें मैंने तत्काल त्याग दिया। उनके जिस व्यवहार ने मुझे कष्ट पहुंचाया, उसे मैंने भी करना छोड़ दिया।
मैंने यह सोचा कि जो बात मुझे अप्रिय लगी, वह औरों को भी अप्रिय लगेगी। इस प्रकार मैंने अशिष्ट लोगों से शिष्टता सीखी है।” अकसर मनुष्य यह भ्रम पाल बैठता है कि ज्ञान सिर्फ विद्वान से प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन अज्ञानी और अशिष्ट को देखकर और उनकी बातों पर गौर कर हम उनका त्याग कर अपना जीवन संवार सकते हैं।
ऊं तत्सत...
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