बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

एक ओर जहां कल गुरूवार 16 अगस्त की शाम को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ ही देश को संचार क्रांति, सर्व शिक्षा अभियान, परमाणु परिक्षण, और सड़के देने वाले एक युग का अंत हो गया। वही देश आज भी सरकार की उलझी हुई कार्य प्रणाली से जूझ रहा हैं। हर नेता बड़े-बड़े वादों के साथ देश के कोने-कोने से उठकर संसद तक का सफर तो तय कर लेता है, पर व्यवस्था को सुलझाने की जगह उसे और पेचीदा बनाता जाता है। जाने कितनी बार ही केंद्र और राज्य सरकार से जुड़े मामलों की सुनवाई करते हुए हालिया सर्वोच्च न्यायालय ये टिप्पणी की हैं कि ऐसा लगता हैं आज देश में सरकार नाम की कोई संस्था कार्यरत है ही नहीं।

बुधवार को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर न्यायधीशों और वकीलों की मौजूदगी में जहां एक ओर कहा कि न्यायालयों को सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। तो दूसरे ही दिन गुरूवार को सर्वोच्च न्यायालय के तीन जजों की खंडपीठ ने राष्ट्रीय नगरीय जीविका मिशन पर एक पीआईएल पर सुनवाई में सरकार के कामकाज पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि हम नहीं समझ पा रहे हैं कि 2000 करोड़ रुपये खर्च करके भी अभी तक केंद्र और राज्य सरकारें गरीब लोगों को रहने का ठिकाना क्यों नहीं दे पा रही है? सीधे तौर पर कानून मंत्री के भाषण को न इंगित करते हुए जज लोकुर ने कहा कि 'हमें कहा जाता हैं कि गवर्नेंस, गवर्नमेंट के लिए हैं और हम कुछ नहीं कर सकते। पर देश में गवर्नेंस जैसा कुछ दिखता ही नहीं तो हम क्या करें।'

सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रीय नगरीय जीविका मिशन के अब तक के हुए कार्यों पर एक जन सुनवाई कर रहा हैं और देख रहा हैं कितने गरीब लोगों को अब तक रहने के लिए छत नसीब हुआ है। मामले पर हुई अंतिम सुनवाई में न्यायालय ने दिशानिर्देश जारी किया था कि सरकार को हर राज्य में एक कमिटी का गठन करना चाहिए, जो राष्ट्रीय नगरीय जीविका मिशन में हुए अब तक के कार्यों की निगरानी कर सके। पर अब तक न तो कमिटी बैठी हैं और न ही उसने कोई रिपोर्ट दी गई है। कई राज्यों ने तो कोई आंकड़ा ही नहीं जुटाया है कि कितने लोग बेघर हैं और कितने शेल्टर होम अब तक बने हैं। न्यायालय द्वारा गठित एक कमिटी ने यह माना हैं राज्यों में कुल बेघर लोगों में 90 प्रतिशत लोगों के ऊपर छत नहीं हैं। 2011 के सेंसस के आंकड़ों को देखे, तो देश में अमूमन 17.73 लाख लोग बेघर हैं। इनमें करीब 10 लाख लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा हैं कि आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय ने 2022 तक देश के सभी बेघरों को छत देने का वादा किया है। पर योजना में अब तक हुए कार्यों से ऐसा प्रतीत होता हैं कि राज्य सरकारों ने कोई भी कार्य ही नहीं किया हैं और यह योजना केवल किसी सपने की तरह बनकर रह सकती है। ऐसे में, लालकिले की प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री का देश के लिए कोई नया सपना बुनना किसी मजाक से कम नहीं लगता है।
■संपादकीय 

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